सप्तश्रृंगी माता आरती | Saptashrungi Devichi Aarti
जय देवी सप्तश्रृंगा अंबा गौतमी गंगा नटली ही ।
बहुरंगा उटी शेंदूर अंगा जय देवी सप्तश्रृंगा।। धृ ।।
पूर्व मुख अंबे ध्यान जरा वाकडी मान मार्कडेय देई कान ।
सप्तशतीचे पान एके अंबा गिरि श्रृंगा, अंबा गौतमी गंगा जय देवी सप्तश्रृंगी। ।1।।
माये तुझा बहु थाट देई सगुण भेट प्रेम पान्हा एक घोट भावे भरले ।
पोट करू नको मनभंगा, अंबा गौतमी गंगा जय देवी सप्तश्रृंगा। 12 ||
महिषीपुत्र म्हैसासुर दृष्टी कामे असुर करि दाल समशेर क्रोधे उडविली ।
शिर शिवशक्ती शिवगंगा, अंबा गौतमी गंगा जय देवी सप्तश्रृंगा।।3।।
निवृत्ति हा राधासुत अंबे आरती गात अठराही तुझे हात भक्तां अभय देत ।
चरणकमल मनभंगा, अंबा गौतमी गंगा जय देवी सप्तश्रृंगा | | 4 | |
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