Sanskrit shlokas on karma | कर्म पर संस्कृत में श्लोक
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
हिंदी अर्थ: हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म का उदय होता है, तब-तब मैं स्वयं को सृष्टि करता हूँ।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
हिंदी अर्थ: तुम्हारा अधिकार कर्म करने में ही है, फलों की चिंता मत करो। कर्म फल का कारण न बने, तथा कर्म में आसक्ति न हो।
कर्मण्यकर्म य: पश्येदकर्मणि च कर्म य:।
स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्त: कृत्स्नकर्मकृत्॥
हिंदी अर्थ: जो व्यक्ति कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म को देखता है, वह बुद्धिमान मानवों में है, वह सम्पूर्ण कर्म करने वाला है।
न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते।
न च संन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति॥
हिंदी अर्थ: कर्मों के आरंभ से ही पुरुष को कर्मरहितता नहीं प्राप्त होती। और संन्यास से ही भी वह सिद्धि नहीं प्राप्त करता।
योगस्थ: कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्यो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥
हिंदी अर्थ: हे अर्जुन! योग में स्थित होकर कर्म करो, संग त्यागकर। सिद्धि-असिद्धि में समान बनकर समता को योग कहते हैं।