Ganapati
मंत्र

Ganapati | गणपती स्तोत्र ( सङ्कष्टनाशन-गणेशस्तोत्र ) |(Sankashtanashan-Ganesh Stotra) 1

गणपती स्तोत्र ( सङ्कष्टनाशन-गणेशस्तोत्र ) | Ganapati Stotra (Sankashtanashan-Ganesh Stotra) 1 श्रीगणेशाय नमः । नारद उवाच । प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् । भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुःकामार्थसिद्धये ॥ १॥ प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम् । तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ॥ २॥ लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च । सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम् ॥ ३॥ नवमं भालचन्द्रं च […]

Ganpati Aarti
आरत्या

श्री गणपतीची आरती | Ganpati Aarti | Sukhkarta Dukhharta 1

श्री गणपतीची आरती | Ganpati Aarti | Sukhkarta Dukhharta सुखकर्ता दुःखहर्ता वार्ता विघ्नाची । नुरवी पुरवी प्रेम  कृपा जयाची । सर्वांगी सुंदर उटी शेंदुराची । कंठी झळके माळ मुक्ताफळांची ॥ १ ॥ जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति । दर्शनमात्रे मनःकामना पुरती ॥ धृ० ॥ रत्नखचित फरा तुज गौरीकुमरा । चंदनाची उटी कुंकुमकेशरा । हिरेजडित

BHAGAVAD GITA
श्रीमद् भागवत गीता श्लोक

SRIMAD BHAGAVAD GITA श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक

SRIMAD BHAGAVAD GITA | श्रीमद्भगवद्गीता संस्कृत श्लोक | Hindi-English(द्वितीयोऽध्याय)२१-३० प्रसंग उन्नीसवें श्लोक में भगवान् ने यह बात कही कि आत्मा न तो किसी को मारता है और न किसी के द्वारा मारा जाता है; उसके अनुसार बीसवें श्लोक में उसे विकार रहित बतलाकर इस बात का प्रतिपादन किया कि वह क्यों नहीं मारा जाता। अब अगले श्लोक

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श्रीमद् भागवत गीता श्लोक

SRIMAD BHAGAVAD GITA | श्रीमद्भगवद्गीता संस्कृत श्लोक | Hindi-English(द्वितीयोऽध्याय)11-20

SRIMAD BHAGAVAD GITA | श्रीमद्भगवद्गीता संस्कृत श्लोक | Hindi-English(द्वितीयोऽध्याय)11-20 प्रसंग – अर्जुन को अधिकारी समझकर उसके शोक और मोह को सदा के लिये नष्ट करने के उद्देश्य से भगवान् पहले नित्य और अनित्य वस्तु के विवेचन पूर्वक सांख्ययोग की दृष्टि से भी युद्ध करना कर्तव्य है, ऐसा प्रतिपादन करते हुए सांख्यनिष्ठा का वर्णन करते हैं- प्रसंग –

Shlok
विद्या संस्कृत श्लोक

Sanskrit Shlok श्री गणेश संस्कृत श्लोक (श्लोक क् १-८) Hindi-English 1

Shree Ganesha Sanskrit Verses (1-8) Sanskrit Shlok IN THIS BLOG POST १  वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ ।  निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा ॥१|| २   नमामि देवं सकलार्थदं तं सुवर्णवर्णं भुजगोपवीतम्ं। गजाननं भास्करमेकदन्तं लम्बोदरं वारिभावसनं च॥२|| ३ गणेशाय विध्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ति प्रचोदयात्||३|| ४ विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सुरारिप्रियाय नमो नम||४|| ५

SRIMAD BHAGAVAD GITA
श्रीमद् भागवत गीता श्लोक

SRIMAD BHAGAVAD GITA | श्रीमद्भगवद्गीता संस्कृत श्लोक | Hindi-English(द्वितीयोऽध्याय)1-10

SRIMAD BHAGAVAD GITA | श्रीमद्भगवद्गीता संस्कृत श्लोक | Hindi-English(द्वितीयोऽध्याय)1-10 प्रसंग – भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन से क्या बात कही और किस प्रकार उसे युद्ध के लिये पुनः तैयार किया; यह सब बतलाने की आवश्यकता होने पर सञ्जय अर्जुन की स्थितिका वर्णन करते हुए दूसरे अध्याय का आरम्भ करते हैं一 प्रसंग – भगवान् के इस प्रकार कहने पर

srimad bhagavad gita
श्रीमद् भागवत गीता श्लोक

SRIMAD BHAGAVAD GITA | श्रीमद्भगवद्गीता संस्कृत श्लोक | Hindi-English | 31-44

SRIMAD BHAGAVAD GITA | श्रीमद्भगवद्गीता संस्कृत श्लोक | Hindi-English प्रसंग – अपनी विषादयुक्त स्थितिका वर्णन करके अब अर्जुन अपने विचारों के अनुसार युद्ध का अनौचित्य सिद्ध करते हैं-(srimad bhagavad gita Shlok) निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव । न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे ।। ३१ ।। हे केशव ! मैं लक्षणों को भी विपरीत ही देख

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श्रीमद् भागवत गीता श्लोक

Sanskrit Shlok श्रीमद्भगवद्गीता संस्कृत श्लोक / Hindi-English 2024

Sanskrit Shlok श्रीमद्भगवद्गीता संस्कृत श्लोक / Hindi-English अनन्तविजयं राजा कुन्ती पुत्रो युधिष्ठिरः । नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ।। १६ ।। कुन्ती पुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्त विजय नामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाये ।। १६ ।। King Yudhisthira, son of Kunti, blew his conch Anantavijaya; while Nakula and Sahadeva blew

Sanskrit Shlok
महापुरुषांचे प्रेरणादायी विचार संस्कृत श्लोक मध्ये

Sanskrit Shlok- बुधभूषण संस्कृत श्लोक अध्याय १ (श्लोक १७-३८) – शंभू राजे 2024

Sanskrit Shlok- बुधभूषण संस्कृत श्लोक अध्याय १ (श्लोक १७-३८) – शंभू राजे (अध्याय १) श्लोक क्र १७ (Sanskrit Shlok) विविच्य संतः कृतिमस्मदीयां गृह्णन्तु सच्चासदसच्च त्यजन्तु। क्षीरावियुक्तं परिहृत्य नीरं क्षीरं भजन्ते खलु राजहंसाः ।। (संभाजी महाराज या प्रस्तावनेत म्हणतात,) आमच्या या ग्रंथाचे परिशीलन करून जाणत्या लोकांनी म्हणजेच विद्वज्जनांनी त्यातील सत् अंश स्वीकारावा आणि असत् अंशाचा त्याग करावा.

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श्रीमद् भागवत गीता श्लोक

Sanskrit Shlok श्रीमद्भगवद्गीता संस्कृत श्लोक 2024

Sanskrit Shlok श्रीमद्भगवद्गीता संस्कृत श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता संस्कृत श्लोक 1 धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः । मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय ।।१।। धृतराष्ट्र बोले- हे सञ्जय ! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित, युद्ध की इच्छा वाले मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया ? ।। १ ।। प्रसंग – धृतराष्ट्र के पूछने पर सञ्जय कहते हैं- (Sanskrit Shlok)

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