Sanskrit Shlok श्रीमद्भगवद्गीता संस्कृत श्लोक / Hindi-English

  • प्रसंग – भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुन के पश्चात् पाण्डव सेना के अन्यान्य शूरवीरों द्वारा सब ओर शंख बजाये जाने की बात कहकर अब उस शंखध्वनिका क्या परिणाम हुआ ? उसे सञ्जय बतलाते हैं-(Sanskrit Shlok)
  • प्रसंग – पाण्डवों की शंखध्वनि से कौरव वीरों के व्यथित होने का वर्णन करके, अब चार श्लोकों में भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति कहे हुए अर्जुन के उत्साहपूर्ण वचनों का वर्णन किया जाता है-(Sanskrit Shlok)
  • प्रसंग – अर्जुन के इस प्रकार कहने पर भगवान् ने क्या किया ? अब दो श्लोकों में सञ्जय उसका वर्णन करते हैं-(Sanskrit Shlok)
  • प्रसंग – भगवान् श्रीकृष्ण की आज्ञा सुनकर अर्जुन ने क्या किया ? अब उसे बतलाते हैं-(Sanskrit Shlok)
  • प्रसंग – इस प्रकार सबको देखने के बाद अर्जुन ने क्या किया ? अब उसे बतलाते हैं-(Sanskrit Shlok)
  • प्रसंग – बन्धुस्नेह के कारण अर्जुन की कैसी स्थिति हुई, अब ढाई श्लोकों में अर्जुन स्वयं उसका वर्णन करते हैं-(Sanskrit Shlok)

अनन्तविजयं राजा कुन्ती पुत्रो युधिष्ठिरः ।

नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ।। १६ ।।

कुन्ती पुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्त विजय नामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाये ।। १६ ।।

King Yudhisthira, son of Kunti, blew his conch Anantavijaya; while Nakula and Sahadeva blew theirs, known as Sughosa and Manipuspaka respectively. (16)

काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः ।

धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः ।।१७।।

द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते ।

सौभद्रश्च महाबाहुः शंखान्दध्मुः पृथक्पृथक् ।।१८।।

श्रेष्ठ धनुष वाले काशिराज और महारथी शिखण्डी एवं धृष्टद्युम्न तथा राजा विराट और अजेय सात्यकि, राजा द्रुपद एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र और बड़ी भुजावाले सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु – इन सभी ने, हे राजन् ! सब ओर से अलग-अलग शंख बजाये ।। १७-१८ ।।

And the excellent archer, the King of Kasi and Sikhandi the Maharathi (great car-warrior), Dhrstadyumna and Virata; and invincible Satyaki, Drupada as well as the five sons of Draupadi, and the mighty-armed Abhimanyu, son of Subhadra, all of them, O Lord of the earth, severally blew their respective conchs from all sides: (17-18)

प्रसंग – भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुन के पश्चात् पाण्डव सेना के अन्यान्य शूरवीरों द्वारा सब ओर शंख बजाये जाने की बात कहकर अब उस शंखध्वनिका क्या परिणाम हुआ ? उसे सञ्जय बतलाते हैं- (Sanskrit Shlok)

स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत् ।

नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन् ।। १६ ।।

और उस भयानक शब्द ने आकाश और पृथ्वी को भी गुँजाते हुए धार्तराष्ट्रों के यानी आपके पक्ष वालों के हृदय विदीर्ण कर दिये ।। १६ ।।

And the terrible sound, echoing through heaven and earth, rent the hearts of Dhritarastra’s sons. (19)

प्रसंग – पाण्डवों की शंखध्वनि से कौरव वीरों के व्यथित होने का वर्णन करके, अब चार श्लोकों में भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति कहे हुए अर्जुन के उत्साहपूर्ण वचनों का वर्णन किया जाता है- (Sanskrit Shlok)

अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वजः ।

प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः ।।७।।

हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते ।

अर्जुन उवाच

सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ।। ।।

हे राजन् ! इसके बाद कपिध्वज अर्जुन ने मोर्चा बाँधकर डटे हुए धृतराष्ट्र-सम्बन्धियों को देखकर, उस शस्त्र चलने की तैयारी के समय धनुष उठाकर हृषीकेश श्रीकृष्ण महाराज से यह वचन कहा- हे अच्युत ! मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिये ।। २०-२१ ।।

Now, O lord of the earth, seeing your sons arrayed against him, and when missiles were ready to be hurled, Arjuna, son of Pandu, took up his bow and then addressed the following words to Sri Krsna; Krsna, place my chariot between the two armies. (20-21)

यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान् ।

कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे ।। २२।।

और जब तक कि मैं युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इन विपक्षी योद्धाओं को भली प्रकार देख लूँ कि इस युद्ध रूप व्यापार में मुझे किन-किन के साथ युद्ध करना योग्य है, तब तक उसे खड़ा रखिये ।। २२ ।।

And keep it there till I have carefully observed these warriors drawn up for battle, and have seen with whom I have to engage in this fight. (22)

योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः ।

धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः ।।२३।।

दुर्बुद्धि दुर्योधन का युद्ध में हित चाहने वाले जो-जो ये राजा लोग इस सेना में आये हैं, इन युद्ध करने वालों को मैं देखूँगा ।। २३ ।।

I shall scan the well-wishers in this war of evil-minded Duryodhana, whoever have assembled on this side and are ready for the fight. (23)

प्रसंग – अर्जुन के इस प्रकार कहने पर भगवान् ने क्या किया ? अब दो श्लोकों में सञ्जय उसका वर्णन करते हैं- (Sanskrit Shlok)

सञ्जय उवाच

एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत ।

सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् ।। २४।।

भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम् ।

उवाच पार्थ पश्यैतान् समवेतान् कुरूनिति ।। २५ ৷ ৷

सञ्जय बोले – हे धृतराष्ट्र ! अर्जुन द्वारा इस प्रकार कहे हुए महाराज श्रीकृष्ण चन्द्र ने दोनों सेनाओं के बीच में भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने तथा सम्पूर्ण राजाओं के सामने उत्तम रथ को खड़ा करके इस प्रकार कहा कि हे पार्थ ! युद्ध के लिये जुटे हुए इन कौरवों को देख ।। २४-२५ ।।

Sañjaya said: O king, thus addressed by Arjuna, Sri Krsna placed the magnificent chariot between the two armies in front of Bhisma, Drona and all the kings and said, Arjuna, behold these Kauravas assembled here. (24-25)

प्रसंग – भगवान् श्रीकृष्ण की आज्ञा सुनकर अर्जुन ने क्या किया ? अब उसे बतलाते हैं- (Sanskrit Shlok)

तत्रापश्यत्स्थितान् पार्थः पितृनथ पितामहान् ।

आचार्यान्मातुलान् भ्रातृन् पुत्रान् पौत्रान् सर्खीस्तथा ।। २६ ।।

श्वशुरान् सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि ।

इसके बाद पृथापुत्र अर्जुन ने उन दोनों ही सेनाओं में स्थित ताऊ-चाचों को, दादों परदादों को, गुरुओं को, मामाओं को, भाइयों को, पुत्रों को, पौत्रों को तथा मित्रों को, ससुरों को और सुहृदों को भी देखा ।। २६ और २७वें का पूर्वार्ध ।।

Now Arjuna saw stationed there in both the armies his uncles, grand-uncles and teachers, even great grand-uncles, maternal uncles, brothers and cousins, sons and nephews, and grand-nephews, even so friends, fathers-in-law and well-wishers as well. (26 & first half of 27)

प्रसंग – इस प्रकार सबको देखने के बाद अर्जुन ने क्या किया ? अब उसे बतलाते हैं- (Sanskrit Shlok)

तान् समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान् बन्धूनवस्थितान् ।। २७ ।।

कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत् ।

उन उपस्थित सम्पूर्ण बन्धुओं को देखकर वह कुन्ती पुत्र अर्जुन अत्यन्त करुणा से युक्त होकर शोक करते हुए यह बचन बोले ।। २७वेंका उत्तरार्ध और २८वेंका पूर्वार्ध ।।

Seeing all those relations present there, Arjuna was filled with deep compassion, and uttered these words in sadness. (Second half of 27and first half of 28).

प्रसंग – बन्धुस्नेह के कारण अर्जुन की कैसी स्थिति हुई, अब ढाई श्लोकों में अर्जुन स्वयं उसका वर्णन करते हैं- (Sanskrit Shlok)

अर्जुन उवाच

दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम् ।। २८॥

सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति ।

वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते ।। २६।।

अर्जुन बोले – हे कृष्ण ! युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इस स्वजन समुदाय को देखकर मेरे अंग शिथिल हुए जा रहे हैं और मुख सूखा जा रहा है तथा मेरे शरीर में कम्प एवं रोमाञ्च हो रहा है ।। २८वेंका उत्तरार्ध और २६ ||

Arjuna said: Krsna, at the sight of these kinsmen arrayed for battle my limbs give way, and my mouth is parching; nay, a shiver runs through my body and hair stand upright. (2nd half of 28 and 29)

गाण्डीवं संसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते ।

न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः ।। ३०।।

हाथ से गाण्डीव धनुष गिर रहा है और त्वचा भी बहुत जल रही है तथा मेरा मन भ्रमित-सा हो रहा है, इसलिये मैं खड़ा रहने को भी समर्थ नहीं हूँ ।। ३० ।।

The bow, Gandiva, slips from my hand and my skin too burns all over; my brain is whirling, as it were, and I can stand no longer. (30) (Sanskrit Shlok)

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