पंचमुखी श्रीगायत्रीदेवी आरती Panchmukhi Gaytridevi Aarti

पंचमुखी श्रीगायत्रीदेवी आरती


आरती श्री गायत्रीजी की ज्ञानद्वीप और श्रद्धा की बाती।

सो भक्ति ही पूर्ति करै जहं घी को।। आरती

मानस की शुची थाल के ऊपर।

देवी की ज्योत जगैं जह नीकी।। आरती…

शुद्ध मनोरथ ते जहां घण्टा।

बाजै करै आसुह ही की।। आरती…

जाके समक्ष हमें तिहुं लोक के।

गद्दी मिले सबहुं लगै फीकी।। आरती…

आरती प्रेम सौ नेम सो करि।

ध्यावहिं मूरति ब्रह्मा लली की।। आरती…

संकट आवै न पास कबौ तिन्हें।

सम्पदा और सुख की बनै लीकी।। आरती…


पंचमुखी श्रीगायत्रीदेवी आरती समाप्त .

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